Saturday, January 25, 2014

आप से ज्यादा उम्मीद नहीं

आम आदमी पार्टी को दिल्ली चुनावों में मिली सफलता से तमाम भारतीय नागरिक मंत्रमुग्ध हैं। आम आदमी पार्टी का नेतृत्व 45 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल के हाथों में है, जो फिलहाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं। यह पार्टी महज एक साल पुरानी है, लेकिन इसकी अपार लोकप्रियता भारत के दो प्रमुख राजनीतिक दलों-वाम नीतियों के प्रति झुकाव रखने वाली कांग्रेस और हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी की सर्वोच्चता को चुनौती पेश कर रही है। अपनी तमाम प्रशंसनीय विशेषताओं के बावजूद आप वह पार्टी नहीं है जो अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर ला सके अथवा रोजगार और विकास के संदर्भ में भारत की क्षमताओं को बढ़ा सके। वास्तव में यदि आप आगामी चुनावों में पर्याप्त सीटें जीतती है तो यह प्रमुख प्रतिद्वंद्वी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक स्थिर सरकार की संभावना को अस्थिर कर सकती है।
बहुत कम समय में आप ने तमाम भारतीय नागरिकों को राष्ट्रीयता के संदर्भ में एक नया और चमत्कारिक नजरिया दिया है। आप ने जिस पारदर्शी तरीके से चुनावी चंदा इकट्ठा किया वह दूसरी तमाम पार्टियों के लिए शर्म का विषय होनी चाहिए। इस पार्टी ने भ्रष्टाचार के मसले पर जिस तरह का कड़ा रुख अख्तियार किया उसने संसद को भ्रष्टाचार रोधी कानून लोकपाल को पारित करने के लिए विवश किया। इस पार्टी के सादगी भरे आचरण ने बड़े बंगलों में रहने वाले और भारी सुरक्षा का तामझाम रखने वाली दूसरी पार्टियों के नेताओं को शर्मिदा होने के लिए विवश किया। युवाओं और मध्य वर्ग की आकांक्षाओं तथा भ्रष्टाचार की महामारी जैसे कारक इसकी चमत्कारिक सफलता के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं।
इस संदर्भ में यह भी एक तथ्य है कि नई उम्मीद और आकांक्षाओं से भरा हुआ यह वर्ग रोजगार के नए अवसर तथा अपने बच्चों के लिए एक बेहतर जीवन की उम्मीद रखता है, लेकिन दुर्भाग्य से आम आदमी पार्टी का नेतृत्व भारत के पुराने वामपंथी विचारों में जकड़ा हुआ है। यह भारत को 1991 से पूर्व के उस समाजवादी अतीत में ढकेल सकता है, जब हमारा देश कोई खास प्रगति नहीं कर सका था। यदि आप नेतृत्व अपने समर्थकों की आकांक्षाओं को नहीं समझता है तो पार्टी को बहुत जल्द नुकसान पहुंच सकता है और तमाम अन्य लोकप्रिय आंदोलनों की तरह यह भी अपनी लोकप्रियता खो सकती है।
विगत सप्ताह में आप अपने पहले आर्थिक इम्तिहान में फेल साबित हुई। इसने एक गलत धारणा के आधार पर सुपरबाजार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को इसलिए अनुमति देने से इन्कार कर दिया कि इससे सुपरबाजार में नौकरियां खत्म होंगी। वह इस बात को नहीं समझ सकी कि इसके समर्थक किसी गंदे किराना स्टोर में काम करने की बजाय एक आधुनिक सुपरबाजार में काम करना पसंद करेंगे। वह भूल गई कि विश्व में सभी जगह आम आदमी अथवा कॉमन मैन सुपरबाजार से सामान खरीदना पसंद करते हैं, क्योंकि यहां कीमतें अपेक्षाकृत कम होती हैं। यहां कीमतें इसलिए कम होती हैं, क्योंकि बड़े खुदरा व्यापारी किसानों से सीधे उत्पाद खरीदते हैं और बिचौलियों की भूमिका नहीं होने के कारण बचने वाला लाभ उपभोक्ताओं को मिलता है।
सुपरबाजार पर प्रहार करने की बजाय आप किसानों को अपना उत्पाद कृषि उत्पाद विपणन समितियों को बेचने के लिए विवश करने वाले कानून को खत्म करती ताकि फल और सब्जियों के दाम नीचे आते। थोक बाजार को खुला करने से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और व्यापारी किसानों से सीधे सामान खरीद सकेंगे, जिससे महंगाई घटेगी।
सभी घरों को 20 किलोलीटर नि:शुल्क पानी देने का विचार बेतुका है। इससे दिल्ली के 30 फीसद गरीबों को कोई मदद नहीं मिलेगी। सब्सिडी की नीति से गरीबों के घर तक पाइपलाइन बिछाने अथवा आधुनिक विकास कार्यो के लिए धन नहीं बचेगा। इसी तरह कैग द्वारा बिजली कंपनियों की ऑडिट से बिजली की आपूर्ति नहीं बढ़ने वाली, बल्कि इससे बिजली क्षेत्र में निवेश और हतोत्साहित होगा। असल में कंपनियों के खातों का ऑडिट पेशेवरों द्वारा होना चाहिए न कि राजनीतिक रूप से अभिप्रेरित सीएजी द्वारा, जो बिजनेस की बारीकियां नहीं समझता। 2002 में जब से दिल्ली की बिजली कंपनियों का निजीकरण हुआ था, बिजली के वितरण में नुकसान और बिजली चोरी 57 प्रतिशत से घटकर 17 प्रतिशत रह गई है। इस बीच जितनी लागत बढ़ी है उतने रेट नहीं बढ़े हैं। 2002 से बिजली की लागत 300 प्रतिशत बढ़ चुकी है जबकि बिजली दरों में मात्र 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अगर केजरीवाल ऊर्जा वितरण में सुधार चाहते हैं तो उन्हें बिजली कंपनियों का एकाधिकार तोड़कर उनकी संख्या बढ़ानी चाहिए ताकि आपसी प्रतिस्पर्धा बढ़े। प्रतिस्पर्धा बढ़ने से कम दाम में बेहतर सेवा मिल सकेगी।
भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों का स्टिंग ऑपरेशन और दिल्ली विश्वविद्यालय में सीटें आरक्षित करने का विचार भी सही नहीं है। भ्रष्टाचार के प्रति कड़ा रुख केजरीवाल की असाधारण विशेषता है। किंतु इससे निबटने के लिए केजरीवाल का प्रमुख उपाय जनलोकपाल सही नहीं ठहराया जा सकता। इससे अधिकारियों की शक्ति घटेगी और प्रशासन, पुलिस व न्यायपालिका में जरूरी सुधार लागू नहीं हो पाएंगे।
दुर्भाग्य से आर्थिक मुद्दों पर भारतीय मतदाताओं के पास कोई विकल्प नहीं है। भाजपा के अलावा हर पार्टी का झुकाव वाम की तरफ है और वे खुद को समाजवादी कहलाने में गर्व महसूस करते हैं। दक्षिण की तरफ झुकाव का स्थान रिक्त है। आप के बजाय भारत को एक ऐसी उदारवादी पार्टी की जरूरत है जो अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए खुलकर बाजार पर भरोसा करे न कि नौकरशाही और राजनेताओं पर। ऐसी पार्टी को आर्थिक और संस्थागत सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। किंतु यह स्थिति जल्द ही बदल सकती है। प्रधानमंत्री पद के भाजपा के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी दक्षिण की ओर झुकाव वाले हैं और फिलहाल देश में सबसे अधिक लोकप्रिय भी हैं। यद्यपि उनकी खुद की पार्टी आर्थिक मुद्दों पर भ्रम का शिकार है, किंतु उनका राज्य गुजरात एक दशक से भी अधिक समय से दोहरे अंकों में आर्थिक विकास कर रहा है। इससे मोदी की निजी निवेश को आकर्षित करने की क्षमता का पता चलता है। वह एक उदारवादी सुधारक नहीं हैं, जिसकी भारत को सबसे अधिक आवश्यकता है, किंतु वह फैसले लेने वाले, व्यापार को बढ़ावा देने वाले और चीजों को दुरुस्त करने वाले व्यक्ति हैं।
आगामी चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलता नजर नहीं आ रहा है और भारतीय मतदाता किसी नए गठबंधन पर विचार कर रहा है। फिलहाल चुनावी दौड़ में मोदी सबसे आगे चल रहे हैं, किंतु बहुत से लोगों का मानना है कि आम आदमी पार्टी इतनी सीटें ले जा सकती है कि मोदी एक स्थिर सरकार का गठन न कर पाएं। इस प्रकार आगामी चुनाव में आप खेल बिगाड़ने की ऐतिहासिक भूमिका अदा कर सकती है। इसका सीधा अर्थ यह होगा कि देश में अस्थिरता छा जाएगी। पिछले पांच साल से कांग्रेस पार्टी की फैसले लेने की पंगुता जग-जाहिर है।

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