Author and public intellectual, Gurcharan Das is best known for a trilogy based on the classical Indian ideal of the goals of life. He studied philosophy at Harvard University and was CEO of Procter & Gamble India before he became a full-time writer. He writes a regular column for the Times of India, five Indian language papers, and contributes to international newspapers.
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Monday, August 25, 2014
उम्मीद जगाने वाले 10 कदम
Friday, August 15, 2014
बदलाव की बड़ी तस्वीर
मोदी सरकार को सत्ता में आए करीब ढाई माह हो चुके हैं। इतने कम समय में किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचना अभी बहुत जल्दबाजी होगी, लेकिन बदलाव के संकेत दिखने लगे हैं और एक बड़ी तस्वीर स्पष्ट होने लगी है। हां, इतना अवश्य है कि जहां लोगों को आमूलचूल बड़े परिवर्तन की अपेक्षा थी वहां निरंतरता पर आधारित छोटे-छोटे बदलाव नजर आ रहे हैं। बजट में बहुत बड़े बदलाव की अपेक्षा पाले बैठे लोगों को भी कुछ निराशा हुई है। इसी तरह जो लोग अनुदार हिंदू तानाशाही के उभार का डर पाले हुए थे वे ऐसा कुछ न होने के प्रति आश्वस्त हुए हैं। प्रधानमंत्री न तो अधिक तेजी से अपने प्रशंसकों की तमाम बड़ी अपेक्षाओं को पूरा कर सकते हैं और न ही अपने दुश्मनों के डर को समूल खत्म कर सकते हैं। इससे पता चलता है कि भारत में किस तरह सत्ता का संचालन होता है। इस निरंतरता की सकारात्मक व्याख्या यही है कि यह भारतीय राज्य के दिनोंदिन अधिक परिपक्व होने को दर्शाता है। इसका नकारात्मक पहलू यह है कि मोदी भी शासन में रातोंरात बड़ा बदलाव शायद नहीं कर सकते। प्रधानमंत्री ने स्वयं भी इससे अपनी मौन सहमति जताई है। वह अधूरे पड़े कामों को पूरा करने में जुटे हैं और यह कोई खराब बात नहीं है। जैसा कि वह कहते भी हैं कि काम करने वाले ज्यादा बोलते नहीं।
इस सरकार द्वारा किए गए थोड़े बहुत किए गए कार्य यही बताते हैं कि मोदी सरकार का मंत्र मौन क्रियान्वयन है। इस संदर्भ में जो महत्वपूर्ण बदलाव हुआ है वह केंद्रीय नौकरशाही के रुख-रवैये से संबंधित है। रिपोर्ट बताती हैं कि वही पुराने अफसर आम लोगों से अधिक आसानी से मिल रहे हैं, उनके फोन उठा रहे हैं और काम कर रहे हैं। समय पर मीटिंग हो रही हैं और यहां तक कि सुबह के नौ बजे भी अधिकारी बैठक कर रहे हैं। इराक में युद्ध क्षेत्र से जिस तरह 48 घंटों के भीतर केरल की नसरें को वापस उनके घर पहुंचाया गया वह प्रशासन के नए तौर तरीकों को दर्शाता है। दूसरा काम बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं में तेजी दिखाने का है, जिससे नए रोजगार अवसरों के सृजन की शुरुआत हुई है। तीसरा संकेत विदेश मंत्रालय में आए नए उत्साह और उद्देश्यपरकता का है। पड़ोसी देशों से संबंध सुधारे जा रहे हैं, जिससे हमारी सुरक्षा सुदृढ़ होगी। नेपाल, बांग्लादेश और भूटान के लोगों का नजरिया भारत के प्रति बदला है। इसी तरह एक और बड़ा प्रशासनिक बदलाव लोगों को प्रमाणपत्रों के प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा सत्यापन से निजात दिलाना है। अब जन्म प्रमाणपत्र, अंकपत्र आदि के सत्यापन के लिए राजपत्रित अधिकारियों के हस्ताक्षर अथवा नोटरी से हलफनामे की आवश्यकता नहीं होगी। आप गांवों में रहने वाली उन विधवाओं के बारे में कल्पना कीजिए जो सरकारी लाभ पाने के लिए एक अधिकारी से हस्ताक्षर कराने के लिए पूरे दिन यात्रा करने को विवश होती हैं और इसके लिए अंतत: उन्हें रिश्वत देनी पड़ती है। वास्तविक दस्तावेजों की आवश्यकता अब भी होगी, लेकिन लालफीताशाही खत्म होगी और ब्रिटिश राज की औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति मिलेगी।
इस क्त्रम में श्रम से संबंधित तीन बड़े सुधार किए गए हैं। हालांकि सरकार द्वारा इस दिशा में उठाए गए कदम पर्याप्त नहीं हैं, लेकिन इससे श्रम कानून में सुधार का रास्ता खुला है। इन सुधारों से कर्मचारी लाभान्वित होंगे और उद्योग-व्यापार कार्य अधिक आसान बनेगा। कंपनियों को नए कर्मचारियों की भर्ती करने में आसानी होगी और नियोक्ता नए लोगों को कौशल प्रशिक्षण देने के लिए प्रोत्साहित होंगे, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में। इसी तरह निरीक्षणों के संबंध में श्रम मंत्रालय के नए कानूनों से छोटी विनिर्माण इकाइयों को श्रम निरीक्षकों के भय से निजात मिलेगी। हमारे निरीक्षकों को याद होना चाहिए कि यह प्रणाली 1880 में अपनाई गई थी। उस समय निरीक्षण के दो प्रकार थे। एक संदिग्ध के खिलाफ, जिसमें उसकी खामियों-कमियों को खोजा जाता था ताकि उन्हें ठीक किया जा सके। दूसरा काम मित्रवत मार्गदर्शन का था, जिसकी सदिच्छा चीजों को ठीक करने की होती थी। यह सही है कि भ्रष्ट श्रम निरीक्षक रातोंरात बदल नहीं जाएंगे, लेकिन उनके व्यवहार को अब कड़ाई से नियंत्रित अवश्य किया जा सकता है। जहां तक महंगाई की बात है तो सरकार ने एफसीआइ के गोदामों में पड़े 50 लाख से एक करोड़ टन खाद्यान्नों को बेचने की बात कही है। महज इसकी घोषणा से बाजार में खाद्यान्न कीमतों में गिरावट आ गई। इस कदम को दूसरी अन्य महत्वपूर्ण चीजों के मामले में भी अपनाया जा सकता है। सब्जियों के मामले में भी अधिक तेजी से हवाई जहाजों के माध्यम से रणनीतिक आयात के द्वारा सरकार आपूर्ति बढ़ाकर महंगाई को नियंत्रण में ला सकती है। कृषि उत्पाद बाजार समितियों अथवा एपीएमसी के एकाधिकार को खत्म करने के लिए निजी किसान मंडियों का सहारा लिया जा सकता है। बजट में शीतभंडारण गृहों की श्रृंखला स्थापित करने की बात कही गई है, इससे किसानों को लाभ होगा और उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत में कमी आएगी।
संप्रग सरकार के समय में शुरू की गई आधार योजना अधिक तर्कसंगत बनाने की बात कही गई है, जो अच्छा कदम है। भुगतान के लिए बायोमीट्रिक तकनीक को मोबाइल फोन से जोड़े जाने से हजारों करोड़ की बचत होगी। इस तरह जवाबदेह प्रशासनिक कामकाज से आम लोगों को लाभ होगा। कुछ नकारात्मक बातें भी हुई हैं। मेरे विचार से डब्ल्यूटीओ वार्ता में भारत को विघ्नकर्ता की भूमिका नहीं निभानी चाहिए। भारत कृषि का बड़ा निर्यातक देश है और यह हमारे हित में है कि लालफीताशाही कम हो और सीमा शुल्क संबंधी औपचारिकताएं तर्कसंगत हों। भारत कमजोर बहुपक्षीय प्रणाली को कमतर आंक रहा है, जिससे अंतत: हमें ही सर्वाधिक लाभ होना है। कुल मिलाकर मोदी सरकार के कामों और उनकी कार्यशैली को देखते हुए हम कह सकते हैं कि नया मंत्र मौन क्रियान्वयन है। बहुत अधिक बातें और काम बहुत थोड़ा करने वाले हमारे देश में यह कार्यप्रणाली एक ताजी हवा की तरह है। जो लोग 15 अगस्त को प्रधानमंत्री से एक दूरदर्शी भाषण की अपेक्षा कर रहे हैं उनका इंतजार आज खत्म होगा।