Tuesday, December 16, 2014

धारावी से प्रेरणा लेकर शहर बनाएं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही हमारे शहरों को पुनर्जीवित करने वाले महत्वाकांक्षी कार्यक्रम की शुरुआत ‘स्मार्ट सिटी’ के बैनर तले करने वाले हैं। हालांकि, भारतीय शहर स्मार्ट तब बनेंगे जब इन्हें उन वास्तविक परिस्थितियों को केंद्र में रखकर बनाया जाएगा, जिनमें भारतीय काम करते हैं और उन्हें लालची राज्य सरकारों के चंगुल से छुड़ाकर स्वायत्तता दी  जाएगी। जब तक शहरों में सीधे चुने गए ऐसे मेयर नहीं होंगे, जिन्हें शहर के लिए पैसा जुटाने की आज़ादी हो और म्यूनिसिपल कमिश्नर जिनके मातहत हों, तब  तक शहरी भारत स्मार्ट होने वाला नहीं।
‘स्मार्ट सिटी’ जुमला हमारी कल्पना को आकर्षित करता है और महत्वाकांक्षी भारत के सामने टेक्नोलॉजी पर आधारित टिकाऊ शहरी भारत का विज़न रखता है। आज़ादी के बाद मोदी पहले ऐसे राजनेता हैं, जो शहरों के बारे में सकारात्मक ढंग से बोल रहे हैं। अब तक नेताओं ने पैसे के लिए शहरों का दोहन तो किया है पर उसमें निवेश कुछ नहीं किया। सरल-सा कारण था, वोट तो गांवों में ही थे। मोदी को अहसास है कि भारत का भविष्य शहरों में लिखा जाएगा। एक-तिहाई भारत तो पहले से ही वहां रह रहा है और देश का दो-तिहाई रोजगार व संपदा वहां पैदा हो रही है। 2030 तक हमारे शहर देश की प्रति व्यक्ति आय में चार गुना इजाफा करेंगे।

आज भारतीय शहर संकट में है। भीड़भरे, शोर-गुल, प्रदूषण और हिंसा। शहरों की भद्‌दी वास्तविकता के कारण हम गांवों के रूमानी सपनों में खो जाते हैं। शहर से ही आए महात्मा गांधी ऐसे ही आत्म-निर्भर गांवों की कल्पना करते थे, जब तक कि डॉ. भीमराव आंबेडकर ने उनके दृष्टिकोण को नहीं सुधारा। उन्होंने कहा, ‘गांव स्थानीयवाद के कूड़ेदान, अज्ञान के अड्‌डे, संकुचित मानसिकता और सांप्रदायिकता के सिवाय है क्या? ’ नेहरू भी गांवों को लेकर दुविधापूर्ण मनस्थिति में थे। उनका संदेह इस समाजवादी विचार से उपजा था कि  शहर, गांवों से आने वाले गरीब कामगारों का शोषण करते हैं। 1940 और 1950 के दशक की हिंदी फिल्मों ने भी ‘गुणवान’ गांवों और ‘अनैतिक’ शहरों की यह छवि पुष्ट की थी।

नेहरू के समय से ही शहरों के लिए कुलीनवादी मास्टर प्लान बनाने का फैशन था। इसमें जमीन, पूंजी और पानी की भारी बर्बादी होती और इसमें भारतीय हजारों वर्षों से जिस तरह रह रहे हैं, उसे नजरअंदाज कर दिया जाता है। ये सख्त मास्टर प्लान कामकाजी और रहने की जगहों को अलग करने के उच्च वर्ग के विचार पर आधारित होते हैं। यह बहुत विनाशक तरीके से कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में व्यक्त हुआ, जिसने दिल्ली के लाखों गरीबों की आजीविका खत्म कर दी।

इसी मानसिकता ने नेहरू को पंजाब व हरियाणा की राजधानी के रूप में चंडीगढ़ स्थापित करने को प्रेरित किया, जिसमें कई एकड़ आकर्षक ग्रीन बेल्ट मौजूद है। चंडीगढ़ मुख्यत: नौकरशाहों के लिए हैं और आम आदमी की आजीविका के विरुद्ध है। अब मोदी ने हमारी शब्दावली में ‘स्मार्ट सिटी’ जुमला और ला दिया है। मैं समझता हूं कि यह पर्यावरण के अनुकूल, टेक्नोलॉजी से एकीकृत और समझदारी से नियोजित शहर है, जिसका जोर सूचना प्रौद्योगिकी के जरिये शहरी मुश्किलें दूर करने पर है।

किंतु शहर तब तक ‘स्मार्ट’ नहीं हो सकता जब तक यह आम आदमी की आजीविका को केंद्र में रखकर डिजाइन नहीं किया जाता। इसके लिए मानवीय दृष्टिकोण से हमारे शहरी गरीबों और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को केंद्र में रखकर सोचना चाहिए। हमें हरे-भरे चंडीगढ़ से नहीं, मुंबई की कुख्यात झुग्गी बस्ती धारावी से प्रेरणा लेनी चाहिए। यह हमें बताती है कि जब गांवों के लोग आजीविका की तलाश में शहरों में आते हैं और काम की जगह के पास ही रहने की जगह खोज लेते हैं तो किस प्रकार शहर का संगठित रूप से विकास होता है।

उनकी जरूरतें पूरी करने के लिए किराना, हेयर कटिंग सैलून, साइकिल रिपेयर और मोबाइल फोन रिचार्जिंग की दुकानें पैदा हो जाती हैं। धारावी की ताकत सड़कों पर दिखाई देने वाली सामाजिकता है, जहां अजनबियों के साथ परस्पर निर्भरता के रिश्ते बन जाते हैं। सड़कों की यह जिंदगी हर भारतीय शहर के लिए महत्वूपूर्ण है। यह अमेरिका में 1950 के बाद से गायब हो गई, जब ऑटोमोबाइल के विकास के साथ लोग उपनगरों में रहने चले गए। दुर्भाग्य से बड़ी संख्या में भारतीय इस अमेरिकी उपनगरीय जीवन-शैली से अभिभूत हैं। नतीजा यह है कि कई शहरी नियामक संस्थाएं जमीन के मिश्रित उपयोग की अनुमति नहीं देतीं कि एक ही कॉलोनी में कामकाजी और रहवासी दोनों क्षेत्रों का साथ में अस्तित्व हो।

कई बहुमंजिला इमारतों को इजाजत नहीं देते। ऐसे देश में यह बेतुका है, जहां जमीन की कमी हो। जिस देश में लोग पैदल चलते हों और साइकिल की सवारी करते हों, वहां सड़क बनाते समय सबसे पहले फुटपाथ और साइकिल पथ के बारे में सोचा जाना चाहिए। इसकी बजाय हमारी कुलीनवादी मानसिकता हजार छात्रों के लिए सैकड़ों एकड़ क्षेत्र वाली यूनिवर्सिटी बनाने की अनुमति देती है, जबकि समझदारी तो इसके लिए शहर के मध्य में बहुमंजिला इमारत बनाने में होती। वहां छात्र जनता का हिस्सा होते और रोज लोगों से उनका संपर्क रहता।

स्मार्ट सिटी को शासन और आर्थिक मामलों में स्वायत्त होना जरूरी है। आज भारतीय शहर राज्य सरकारों की दया पर निर्भर हैं। इसके लिए 74वां संविधान संशोधन लाया गया था, लेकिन राज्यों ने इसमें अड़ंगा डाल दिया। जब तक लोगों के प्रति जवाबदेह मेयर नहीं होगा, सेवाओं में सुधार भी नहीं होगा। म्यूनिसिपल कमिश्नर मुख्यमंत्री के नहीं, मेयर के मातहत होना चाहिए। पैसा जुटाने के इसके अपने संसाधन होने चाहिए। वह टैक्स के अलावा दी जा रही सेवाओं के बदले तर्कसंगत शुल्क वसूल करे। राजस्व बंटवारे के तहत राज्य के साथ ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि पहले से ही पता हो कि कितना पैसा मिलने वाला है। दुनिया के कई शहरों की तरह इसे म्यूनिसिपल बांड जारी करने की अनुमति होनी चाहिए। मोदी को श्रेय दिया जाना चाहिए कि वे शहरों को पुनर्जीवित करने को केंद्र के एजेंडे में ले आए।

उन्हें जल्दबाजी न कर, सावधानी से कार्यक्रम विकसित करना चाहिए। जब वे स्मार्ट सिटी का कार्यक्रम लाएंगे तो लोग उन पर शोशेबाजी या नई बोतल में पुरानी शराब का आरोप लगाएंगे। एक अर्थ में यह सही भी है, क्योंकि यह विचार पुरानी सरकार के जेएनएनयूआरएम का हिस्सा रहा है। किंतु 20 साल बाद आप क्या याद रखेंगे, जेएनएनयूआरएम या स्मार्ट सिटी? बेशक, यह ऐसा नाम है, जो लोगों को इसके लिए एकजुट करेगा। कामना है कि यह वाकई ऐसा कार्यक्रम साबित हो, जो भारत के भविष्य को रूपांतरित कर दे।

3 comments:

Anonymous said...

very inspirational........itsgoa.com

Capt. Narendra said...

You have made an excellent point by introducing Dharavi model. A parallel model is post war Britain. The captains of industry in UK built three types of houses near their industrial units, be that a textile mill or a medium/small scale industry. The owners built detached houses for themselves, semidetached house for their executives and terraced houses for their workers. When expansion was needed, the government built or developed new towns like Welvyn Garden City, Milton Keynes etc., gave housing grants to first time buyers, generous tax breaks for mortgages etc. maybe the GOU thinks about his model too.

Unknown said...

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