दैनिक भास्कर | जून 14, 2019
नरेन्द्र मोदी के फिर चुने जाने के बाद धीरे-धीरेबढ़ती तानाशाही का भय फिर जताया जारहा है लेकिन, मुझे उलटी ही चिंता है। मुझे शक्तिशालीसे नहीं बल्कि कमजोर व बेअसर राज्य-व्यवस्था(राज) से डर लगता है। कमजोर राज्य-व्यवस्था मेंकमजोर संस्थान होते हैं, खासतौर पर कानून का कमजोरराज होता है, जिसे न्याय देने में दर्जनों साल लग जातेहैं और अदालतों में 3.3 करोड़ प्रकरण निलंबित रहतेहैं। यह कमजोरों को शक्तिशाली के खिलाफ संरक्षणनहीं देती और विधायिका के हर तीन में से एक सदस्यके आपराधिक रिकॉर्ड को बर्दाश्त कर लेती है। कमजोरराज्य-व्यवस्था लोगों के मन में निश्चिंतता के बजायअनिश्चितता पैदा करती है और पुलिसकर्मियों, मंत्रियोंऔर जजों को खरीदे जाने की अनदेखी करती है। यहकार्यपालिका को तेजी से कार्रवाई करने से रोकती है औरसुधारों को घोंघे की रफ्तार से लागू करती है।
मोदी ने पिछले पांच वर्षों में यह सबक लिया होगाकि भारतीय प्रधानमंत्री की शक्ति की सीमा है। उदारवादीलोकतांत्रिक राज्य-व्यवस्था तीन स्तंभों पर आधारित होतीहै-प्रभावी कार्यपालिका, कानून का राज और जवाबदेही।हम तीसरे स्तंभ की बहुत चर्चा करते हैं, जबकि असलीमुद्दा पहले का है। चूंकि देश हमेशा चुनावी मोड में रहताहै तो इसकी समस्या जवाबदेही की नहीं है। समस्या राज्यव्यवस्था के काम करवाने की योग्यता की है। भारतीयप्रधानमंत्री इसलिए भी कमजोर है, क्योंकि असली शक्तितो राज्यों के मुख्यमंत्रियों में निहित है, जो भारत केअसली शासक हैं। विडंबना है कि मुख्यमंत्री के रूप मेंनरेन्द्र मोदी के प्रदर्शन के कारण उन्हें 2014 में चुना गयाथा और हमने मान लिया था कि वे प्रधानमंत्री बनने केबाद वही जादू दिखाएंगे लेकिन, ऐसा हुआ नहीं।
2014 में नरेन्द्र मोदी ने लोगों से कहा कि वे उन्हेंभारत को पूरी तरह बदलने के लिए दस साल दें। यहमौका उन्हें मिल गया है। वह बदलाव आर्थिक सुधारों सेनहीं, बल्कि शासन संबंधी सुधारों से शुरू होना चाहिए।मोदी ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर से प्रेरणा लेसकते हैं। उन्होंने शासन संबंधी कठिन सुधारों को दूसरेकार्यकाल के लिए रखा। भारत में राज्य-व्यवस्था कीक्षमता बढ़ाना आसान नहीं है, क्योंकि चीन के विपरीतभारत ऐतिहासिक रूप से एक कमजोर राज्य-व्यवस्थावाला देश रहा है। हमारा इतिहास स्वतंत्र राज्यों का है,जबकि चीन का इतिहास एकल साम्राज्यों का है। भारतके चार साम्राज्य -मौर्य, गुप्त, मुगल और ब्रिटिश- चीनके सबसे कमजोर साम्राज्य से भी कमजोर थे।
हमारी पहली वफादारी समाज के प्रति है- हमारापरिवार, हमारी जाति, हमारा गांव। चाहे राज्य-व्यवस्थाज्यादातर कमजोर रही पर भारत में हमेशा शक्तिशालीसमाज रहा है। इसलिए दमन शासन ने नहीं किया, यहसमाज की ओर से हुआ मसलन जैसा ब्राह्मणों ने कियाऔर हमें दमन से बचाने के लिए बुद्ध जैसे संन्यासी औरसंतों की एक सतत धारा की जरूरत पड़ी। चूंकि सत्ताऐतिहासिक रूप से बिखरी हुई थी तो भारत 70 सालपहले संघीय लोकतंत्र और चीन केवल तानाशाही राष्ट्रही बन सकता था। इतिहास से मिला सबक है कि हमेंमजबूत राज्य-व्यवस्था चाहिए और राज्य-व्यवस्था कोजवाबदेह बनाने के लिए ताकवर समाज चाहिए।
विडंबना है कि आज चीन की सरकार भारत कीसरकार से ज्यादा लोकप्रिय है, क्योंकि इसने असाधारणप्रदर्शन किया है। न सिर्फ इसने गरीबी मिटा दी है, देश कोमध्यवर्गीय बना दिया बल्कि यह लगातार दिन-प्रतिदिनके शासन में सुधार करती जा रही है। कुल-मिलाकरचीन ने आम आदमी को बेहतर शिक्षा व स्वास्थ्य दियाऔर उनका कल्याण किया। तानाशाही व्यवस्था इसकीसफलता का रहस्य नहीं है बल्कि रहस्य यह है कि इसनेराज्य की क्षमता पर फोकस रखा। जहां चुनावों ने भारतीयलोगों को अधिक स्वतंत्रता दी है (और यह बहुत बड़ीउपलब्धि है), चीन की सरकार ने बेहतर शासन के जरियेदिन-प्रतिदिन की निश्चिंत ज़िंदगी दी है। कहने का मतलबयह नहीं कि भारतीयों को अपनी व्यवस्था चीनियों सेबदल लेनी चाहिए (उन्हें भी ऐसा नहीं करना चाहिए)।किंतु यदि आप भारतीय व चीनी आम आदमी की जगहखुद को रखकर देखें तो आपको भारतीय लोकतंत्र द्वाराचुनी गई ज्यादातर सरकारों से हताशा होगी।
चीन ने अपनी नौकरशाही को ज्यादा प्रेरित व प्रभावीबनाकर शासन की क्षमता बढ़ाई। इसका मतलब हैअधिकारियों के प्रदर्शन पर निकट से निगाह रखना औरउन्हें पुरस्कृत करना है। चीनी नौकरशाही में पदोन्नतिवरिष्ठता से नहीं बल्कि नागरिकों को बेहतर सेवाएं देनेके आधार पर होती है। इससे चीनी नौकरशाह, नियमों सेबंधे भारतीय अधिकारियों के विपरीत अधिक व्यावहारिकरवैया अपनाने को प्रेरित होते हैं। भारतीय नौकरशाहीदशकों से पीड़ित रही है, क्योंकि किसी राजनेता में उनअत्यंत जरूरी सुधार लागू करने का कौशल नहीं था,जिस पर पचास साल पहले सहमति बनी थी। कर वसूलीका एक ईमानदार और पारदर्शी तंत्र, अधिक कर वसूलकर सकेगा। यही बात राज्य-व्यवस्था के तीन अंगों –न्यायपालिका, पुलिस व संसद में सुधारों पर लागू होती है।
क्या नरेन्द्र मोदी ऐसे प्रभावी नेता साबित होंगे, जोनिहित स्वार्थी तत्वों का सामना करके राज्य-व्यवस्था कीक्षमता बढ़ाने का साहस दिखाएंगे? उन्हें गुजरात व केंद्रदोनों स्तरों पर काफी अनुभव प्राप्त है। वे निहित स्वार्थीतत्वों से टकराने के जोखिम भी जानते हैं। शुरुआत स्पष्टदिखते आसान सुधारों से हो सकती है। यानी पहले तोमौजूदा कानून लागू करें, फिर नए कानून बनाएं। नीति कारिश्ता 'क्या' से नहीं बल्कि 'कैसे' से होता है। हर कोईजानता है कि 'क्या' किया जाना चाहिए पर सवाल तो यहहै कि इसे 'कैसे' किया जाए। भारत में बहुत सारे 'कानून'हैं पर चीन में 'व्यवस्था' है। आप को दोनों की जरूरतहै- 'कानून और व्यवस्था' (लॉ एंड ऑर्डर)।
हालांकि, केंद्रीयकृत शासन भारत के लिए ठीकनहीं है पर भारत का प्रधानमंत्री इतना मजबूत होताहै कि वह केंद्र व राज्य, दोनों स्तरों पर शासन कीक्षमता बढ़ा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी को लोगों काजबर्दस्त समर्थन मिला है, जो शासन में सुधार के लिएसुनहरा मौका है। सरकारी संस्थानों में सुधार, आर्थिकसुधारों से कहीं अधिक कठिन होगा लेकिन, फिर उसकेफायदे भी कहीं ज्यादा होंगे। यदि मोदी सफल होते हैं तोइतिहास में उन्हें न सिर्फ महान नेता के रूप में बल्किइस बात के लिए भी जाना जाएगा कि उन्होंने 'न्यूनतमसरकार,अधिकतम शासन' का अपना वादा पूरा किया।
3 comments:
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