पिछले एक माह में रिश्तों में
पैदा हुई त्रासदी से कई महत्वपूर्ण लोगों की जिंदगी में विनाश आया है।
अच्छे लेखक और यूपीए सरकार में मंत्री शशि थरूर की पत्नी की दिल्ली में मौत
हुई। कहा गया कि यह आत्महत्या थी। लगभग इसी समय फ्रांस की प्रथम महिला
वैलेरी ट्रिरवेइलर को भी पेरिस के अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। ये दोनों
घटनाएं संदिग्ध विवाहेत्तर रिश्तों के उजागर होने के बाद हुई। सुनंदा
पुष्कर ने अपने पति पर एक पाकिस्तानी पत्रकार के साथ अंतरंग संबंधों का
आरोप लगाया। ट्रिरवेइलर की जिंदगी फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वां ओलांड
के एक अभिनेत्री से संबंधों के कारण उजड़ गई। प्रकरण उजागर होने के कुछ
दिनों बाद दोनों अलग हो गए। ये ग्लैमरस सेलिब्रिटीज के बारे में कोई उथले
सैक्स स्कैंडल नहीं थे। ये मानव परिस्थिति के बारे में कुछ गहरी और दुखद
बातें उजागर करते हैं।
ऐसे प्रकरणों में आमतौर पर वफादारी न निभाने वाले
पुरुष को दोष दिया जाता है। उसे झूठा, विश्वासघाती और धोखेबाज कहा जाता है।
फिर ऐसे लोग भी होते हैं जो प्रेम विवाह की प्रथा को भी उतना ही दोषी
मानते हैं। आधुनिक प्रेम विवाह में तीन पहलू होते हैं-प्रेम, अंतरंग संबंध
और परिवार। इनके कारण संबंधित युगल से प्राय: असंभव-सी अपेक्षाएं की जाती
हैं। बेशक विवाह के पीछे मूल विचार तो परिवार का निर्माण ही था। फिर इसके
साथ रोमांटिक प्रेम आ गया और यह मांग भी जुड़ गई कि जीवनसाथी अंतरंग
रिश्तों में भी परिपूर्ण साबित हो।
दार्शनिक एलन डि बोटोन के मुताबिक पुराने समय में
पुरुष इन तीन जरूरतों को तीन भिन्न महिलाओं के जरिये पूर्ण करते थे। पत्नी
घर का निर्माण करती थी, बच्चों की देखभाल करती थी। एक प्रेमिका चोरी-छिपे
उसकी रोमांटिक जरूरतें पूरी करती थी और अन्य प्रकार के संबंध के लिए कोई
बाहरी औरत होती थी। भूमिकाओं का यह विभाजन पुरुषों के बहुत अनुकूल था,
किंतु आज हम एक ही व्यक्ति से तीनों भूमिकाएं निभाने की नामुमकिन-सी
अपेक्षा रखते हैं। ऐसे में खासतौर पर मध्यवर्गीय कामकाजी महिलाएं इन
अपेक्षाओं को लेकर बहुत दबाव महसूस करती हैं। फिर घर के बाहर कॅरिअर में
सफल होने का तनाव तो होता ही है। ऐसे में वे सिर्फ एक प्रेमपूर्ण, उदार और
वफादार पति चाहती हैं।
आधुनिक प्रेम विवाह की इतनी सारी जरूरतें पूरी करने
की पागलपनभरी आकांक्षाएं बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक बोझ हो जाता है। इससे शायद
सुनंदा पुष्कर और ट्रिरवेइलर की त्रासदियों को समझने में मदद मिल सके।
मेरे दो पसंदीदा उपन्यास फ्रांसीसी लेखक गुस्ताव फ्लाउबर्त का मेडम बोवेरी
और लियो तोल्सतोय का एना कैरेनिना की नायिकाओं की त्रासदी के पीछे भी
निश्चित ही ये ही कारण थे। दोनों महिलाओं को ऐसी आर्थिक सुरक्षा प्राप्त
थी, जिससे किसी को भी रश्क हो सकता था पर उनके विवाह में प्रेम नहीं था।
दोनों को जीवन से रोमांस की आधुनिक अपेक्षाएं थीं और उन्होंने विवाहेत्तर
संबंधों में इसे पाने का दुस्साहस किया। हालांकि समाज उनके इन संबंधों के
प्रति उदार नहीं था और दिल टूटने से उनकी जिंदगियां आत्महत्या में खत्म
हुईं।
मौजूदा भारत में लोगों के जीवन में रोमांटिक प्रेम
का परिचय कराने में बॉलीवुड की मुख्य भूमिका रही। फिल्मों के प्रभाव के
बावजूद भारतीयों को यह रोमांटिक प्रेम का मिथक कभी पूरी तरह स्वीकार नहीं
हुआ। इसीलिए अरेंज मैरिज की समझबूझभरी संस्था न सिर्फ कायम है बल्कि फल-फूल
रही है। संपूर्ण मानव इतिहास में ज्यादातर समाजों में अरेंज मैरिज की ही
प्रथा रही है, किंतु 19वीं सदी की शुरुआत में पश्चिम में मध्यवर्ग के उदय
के साथ लव मैरिज चलन में आया। यह उसी दौर की बात है जब यूरोप में वैचारिक
जागरूकता आई, जिसमें स्वतंत्रता, समानता, व्यक्तिवाद और धर्मनिरपेक्षता
जैसे विचार हावी थे। लव मैरिज के साथ ये उदार मूल्य ब्रिटिश राज के साथ
भारत में आए। आज ये मूल्य बहुत बड़े पैमाने पर मध्यवर्ग में जगह बना चुके
हैं।
चाहे आधुनिक प्रेम विवाह भारत में पश्चिम से आया पर
रोमांटिक प्रेम हमारे लिए नया नहीं है। संस्कृत और पाली प्रेम काव्य में
हमें इसके दर्शन होते हैं। विद्याकार के खंडकाव्य और सतसई तो इसके उदाहरण
हैं ही, कालीदास जैसे शास्त्रीय कवि और बाद में भक्ति काव्य खासतौर पर गीत
गोविंद में यह दिखाई देता है। इस काव्य में लगातार निषिद्ध रोमांटिक प्रेम
की चर्चा है। ऐसे निषिद्ध प्रेम के मोह से कौन बच सका है। एक सुंदर अजनबी
के साथ प्रेम संबंध एक रोमांचक संभावना है खासतौर पर बरसों तक बच्चों की
परवरिश के थकाऊ अनुभव के बाद तो इसका आकर्षण बढ़ ही जाता है। सिर्फ शारीरिक
सुख ही इस ओर नहीं खींचता पर खुद के अहंकार के पूजे जाने का गर्व भी इसकी
वजह होती है।
हालांकि इन आह्लादकारी विचारों पर अपने जीवनसाथी को
चोट पहुंचाने का अपराध बोध मंडराता रहता है। विवाहेत्तर संबंधों में हमेशा
कोई न कोई तो शिकार होता ही है। भारतीय पुरुष के लिए यह जीवन के दो
लक्ष्यों, धर्म यानी नैतिकता और काम के बीच संघर्ष का भी होता है। देह के
आनंद का उत्सव मनाने वाले कामसूत्र में भी कहा गया है कि काम की आवेगात्मक
इच्छाओं की लगाम धर्म के हाथों में होनी चाहिए।
इसके कारण एक धर्मसंकट पैदा होता है। एक व्यक्ति
दूसरे को धोखा दे या खुद को। दोनों में से कोई भी विकल्प आजमाए, उसकी हार
ही है। यदि आवेग को प्राथमिकता दी तो जीवनसाथी के साथ धोखा होता है और
प्रेम जोखिम में पड़ जाता है। यदि प्रलोभन के प्रति उदासीन हो जाए तो खुद
के दमित होने का जोखिम रहता है। यदि प्रेम प्रकरण गुप्त रखता है तो वह
व्यक्ति भरोसे के काबिल नहीं रहता। स्वीकार करता है तो बेवजह का दुख पैदा
हो जाता है। यदि खुद की बजाय बच्चों के हित को तरजीह देता है तो बच्चों के
चले जाने के बाद असंतोष पैदा होता है। खुद के हित को तरजीह देता है तो
बच्चों की कभी खत्म न होने वाली नाराजी का सामना करना पड़ता है। खेद है कि
यह दुखद और नैराश्यपूर्ण स्थिति 'काम' के कारण पैदा होती है, कम से कम
पुरुषों के दृष्टिकोण से तो यही बात है।
पिछले कुछ दशकों से भारत में विवाह को लेकर रवैया
बदल रहा है और युवा अब दैहिक संबंधों पर स्वतंत्रतापूर्वक चर्चा करते हैं।
अरेंज मैरिज के बने रहने के बावजूद युवावर्ग उसके प्रेम में पडऩा चाहता है,
जिससे उसे विवाह करना होता है। जब उनके विवाह में कोई गड़बड़ होती है तो
उनका रोमांटिक भ्रम छिन्न-भिन्न हो जाता है। फिर देवदास की तरह वे टूटे दिल
की तीमारदारी में लग जाते हैं। वे यह नहीं समझते कि कभी न खत्म होने वाला
प्रेम बॉलीवुड और रोमांटिक काव्य की देन है। उन्हें अहसास नहीं है कि
मानवीय प्रेम हमेशा खत्म होता है। हम अकेले पैदा होते हैं, अकेले मरते हैं।
इन दो घटनाओं के बीच हमें जो भी साथ मिलता है वह विशुद्ध रूप से किस्मत की
बात है। अकेलापन यह हमारी सामान्य मानवीय परिस्थिति है। हमें संकल्प के
साथ अपने इस अकेलेपन को एक परिपक्व, परवाह करने वाले और स्वतंत्र
व्यक्तित्व में बदलना चाहिए। एक-दूसरे के व्यक्तित्वों और पृथकता की सच्ची
स्वीकार्यता ही वह नींव है जिस पर एक परिपक्व विवाह आधारित होना चाहिए।
2 comments:
For those who find hard to read Hindi, it appears, this post is translated version of earlier post "Modern marriages aren’t made in heaven". Needed Google translate to figure that.
Very Good Stuff In hindi . i like this
Elearning Solutions
Post a Comment